यह समस्त चराचर सृष्टि एक ही तत्त्व से निर्मित है।
समस्त जड़ चेतन में एक ही तत्त्व क्रियाशील है।
हम सब इसी एक तत्त्व का अंश हैं। इसी एक तत्त्व का विस्तार हैं।
जब हम अपने अहम् के कारण इस भाव को अनुभव नहीं कर पाते तभी अपने और पराये के प्रति पूर्वाग्रहों से पीड़ित होते हैं।
इस एकत्व के भाव के साथ हमें इस संसार में अपनी अपनी भूमिकाओं को निभाने के लिए आगे बढ़ना है।
आइये, इस भावना के साथ हम मानवता की सेवा के लिए आगे बढें।
आइये, इसी महान भावना के साथ जीव- जंतुओं, वृक्षों-नदियों और समस्त प्रकृति के संरक्षण के लिए सामने आयें।
आइये, छोटे-छोटे विषयों को भुला कर हम अपने अहम् को शांत करें।
अपने अपने स्तर पर हम परस्परता का भाव बढाएँ । आनंद का आदान-प्रदान करें।
हम सृष्टि के विस्तार का एक कमजोर पक्ष होने से बचें।
शक्ति सम्पन बनें और शक्ति का सदुपयोग विकास के लिए करें, विनाश के लिए नहीं।
विकास भौतिक हो, विकास आध्यात्मिक हो। शक्ति ऊर्धव्गामी हो ।
आइये , इस सनातन सत्य को समझें।
वेदान्त का महान भारतीय आदर्श शीघ्र ही एक वैश्विक संस्कृति का सूत्रपात करेगा।