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Tuesday, May 17, 2022
Monday, October 18, 2010
Thursday, June 25, 2009
वेदान्त मण्डलं को शंकराचार्य जी का आशीर्वचन
Friday, June 5, 2009
पर्यावरण दिवस 5 जून, 2009 पर विशेष
Tuesday, May 26, 2009
आज का वेदान्त विचार
Friday, May 15, 2009
वेदांत दर्शन क्या है?
Thursday, April 30, 2009
पुण्य स्मरण: आदि शंकराचार्य
हिंदू धर्म के आदि ध्वजा-वाहक थे
आदि शंकराचार्य - श्री विजय विजन
भारतीय दर्शन के अद्वैत सिद्धांत में आत्मा एवं ब्रह्मके संबंध को व्यावहारिक एवं बौद्धिक आधार प्रदान करके जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने न केवल हिंदू धर्म को पुनर्प्रतिष्ठित करने में अहम भूमिका निभाई अपितु देश भर की लम्बी यात्राओं के माध्यम से चार मठों की स्थापना कर वेदों तथा वेदांत की प्रतिष्ठा फिर पूरे विश्व में कायम की।
केरल के कलाडीमें वैशाख शुक्ल पंचमी को उनका जन्म हुआ था। बालक शंकर के बाल काल में ही उनके पिता का निधन हो गया। माता की देखरेख में उनका पालन पोषण हुआ। सिर्फ आठ साल की उम्र में ही वे वेदों के ज्ञाता हो गए थे। ८ वर्ष की आयु में ही उन्होंने अपनी कुशाग्र बुद्धि से लोगों का चकित कर दिया था, तथा अपनी माता से हठ करके संन्यास ग्रहण कर लिया था।उस काल में भारतीय जनमानस में बौद्ध एवं जैन धर्म का विशेष प्रभाव था। दूसरी ओर हिंदू धर्म अनेक छोटे-छोटे मतों ओर संप्रदायों में विभाजित हो रहा था। समाज को दिशा देने वाले किसी ऐसे जीवन-दर्शन का आभाव था, जो समाज को एक सूत्र में बाँध सके। समाज में अनीश्वर-वादी दर्शन तथा चार्वाक-वादी दर्शनों के प्रभाव से लोग धर्म-विमुख ओर स्वछन्द हो रहे थे । ऐसे समय में जगदगुरु शंकराचार्य ने सभी पंथों, मठों और संप्रदायों तथा सभी दार्शनिक सिद्धांतों को एक ध्वजा के नीचे लाने का विलक्षण प्रयास किया। अपने प्रयासों में उन्हें अद्भुत सफलता भी मिली। उन्होंने हिंदू धर्म को विश्व मंच पर पुनः प्रतिष्ठित किया। वेदों के माध्यम से हिंदू धर्म की पुनः स्थापना के बाद उन्होंने विश्व को अद्वैत वेदांत के मर्म से परिचित कराया। उनके द्वारा आरम्भ की गई वेदांत की अध्यात्म यात्रा वर्तमान में भी विश्व मानस को आलोकित कर रही है। देश भर में घूम घूम कर उन्होंने वेद-वेदांत के प्रति लोक में रूचि जागृत की तथा लोगो को धर्म मार्ग पर प्रवृत होने का न केवल संदेश ही दिया, अपितु अद्भुत प्रेरणा भी दी।शंकराचार्य के समय में वैदिक धर्म की स्थिति अच्छी नहीं थी। समाज में वेद-निंदक समुदाय वेदों की निरंतर निंदा में लगे थे। आदि शंकराचार्य ने इस स्थिति में आमूलचूल बदलाव के लिए शास्त्रार्थ के माध्यम से बौधिक वेद-निंदक समुदायों को चुनोती दी थी। अपनी विलक्षण मेधा से उन्होंने अनेक वेदनिन्दक और दूसरे धर्म विरोधी विद्वानों को ललकार कर परास्त किया था। वैदिक धर्म की पुर्नस्थापनाके लिए उन्होंने विभिन्न पीठों और अखाडों की स्थापना की तथा अपने शिष्यों को धर्म विजय के लिए प्रशिक्षित किया। आदि शंकराचार्य ने सिर्फ 32 साल की छोटी सी आयु में ही वैदिक धर्म का पुनुरुद्धार किया और वेदों की प्रतिष्ठा स्थापित की । आत्मा एवं ब्रह्मके संबंध में उनका अद्वैत वेदांत का सिद्धांत अद्भुत और अद्वितीय है। इसके साथ ही उन्होंने अनेक लोक प्रिय काव्य और धर्म ग्रंथों का सम्पादन भी किया। उन्होंने भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्रों के साथ साथ उपनिषदों पर भी अद्वितीय भाष्य लिखे।
केवल 32वर्ष की उम्र में शंकराचार्य ने उन बौद्धिक ऊंचाइयों को छुआ, जिन पर आज भी भारतीय धर्म मानस गर्व करता है। उनकी जयंती के अवसर पर उन्हें शत-शत नमन।
Tuesday, April 28, 2009
Wednesday, April 15, 2009
Thursday, March 5, 2009
Release of Vedant Mandalam magazine, issue 10-11
Shri Vijan with Swami Vivekananda Saraswatiji
Swamiji & Shri Vijan
Swamiji releasing the Vedant Mandalam
Release of Vedant Mandalam magazine
by the eminent citizens Shri Gopesh Goswamiji
watching the magazine
On the holy occasion of Maha Shivratri Parva, a 21 Kundiya Yajya
was organized by Shri Gauri Shankar Mandir Trust, Greater NOIDA
on 22-23rd Feb, 2009.
On this very occasion the 10-11th issue of Vedant Mandalam quarterly was also released by the eminent cultural and religious personalities from Delhi NCR. This very issue of Vedant Mandalam magazine was based on environmental awareness.
An exhibition-cum-sale of older issues of Vedant Mandalam magazine was also arranged by the VM trust. The income from the sale was offered to the Mandir trust. Swami Vivekananda Saraswati, Acharya Gopesh ji Goswami and others blessed the
VM trust for its devotion
towards the society.
Among the others Shri Vijay Vijan, Founder Trustee VM Trust and Editor Vedant Mandalam magazine, joined the program. Shri Devendra Kumar Mittal, Trustee Shri Gauri Shankar Mandir Trust and Trustee & General Secretary, VM Trust organized and conducted the program.
Thursday, February 19, 2009
See Green : See Life
Thursday, February 12, 2009
Friday, January 30, 2009
वेदान्तिक विचारलेख
Tuesday, January 27, 2009
आज का वेदांत विचार
Wednesday, January 21, 2009
" वेदांत मण्डलं" एक विज़न - एक मिशन - एक परिचय
Monday, January 19, 2009
'वेदांत मंडलम' ट्रस्ट (रजी.)
ट्रस्ट के उद्देश्य :
१। धर्म, जाति, रंग, देश के भेद-भाव के बिना वैश्विक जनमानस में वेद-वेदांत के एकात्म भाव एवं अन्य लोकोपयोगी पक्ष का प्रचार प्रसार करना।
२। नियमित सत्संगों, प्रवचनों, एवं जनजागृति कार्यक्रमों के माध्यम से , सुनिश्चित वेदान्तिक परम्परा का प्रचार प्रसार करते हुए वेदांत-सम्मत जीवन-चर्या को नए सन्दर्भों में लोकप्रिय बनाना।
३। संस्था की सुनिश्चित वेदान्तिक परम्परा के प्रचार प्रसार के लिए शिक्षार्थियों, स्वयंसेवकों, प्रचारकों को तैयार करना। रचनात्मक व्यक्तित्व का विकास। इस कार्य के लिए वेदान्तिक विद्यालयों की स्थापना करना।
४। नूतन एवं पुरातन वेदान्तिक साहित्य का अनुसन्धान, संग्रहण एवं शोध।
५। 'वेदांत मण्डलं' नाम से नियमित/आवधिक पत्रिका एवं अन्य लोकोपयोगी साहित्य का प्रकाशन।
६। समय-समय पर सांस्कृतिक संगोष्ठियों/ सम्मेलनों के माध्यम से मनीषियों को संस्था के मंच पर सम्मिलित एवं सम्मानित करना।
७। भारतीय संस्कृति एवं जीवनमूल्यों के प्रति वैश्विक जनजागरण के लिए कृतसंकल्प व्यक्तियों एवं उपयोगी संसाधनों की खोज। संस्था द्वारा निर्मित वस्तुओं से अर्जित आय से संस्था को सुदृढ़ आधार प्रदान करना। इन संसाधनों से व्यक्ति, राष्ट्र एवं समस्त विश्व के पुनर्निर्माण में रचनात्मक योगदान प्रदान करना।
८। सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए समाज में भ्रातृत्व आदि गुणों का प्रसार करना। इन कार्यों की स्थापना के लिए उपयुक्त संस्थाएं स्थापित करना।
९। इन उदेश्यों की पूर्ति के लिए व्यक्तियों तथा संस्थाओं में ऐसी उपयुक्त शर्तों पर निवेश करना जिससे संस्था को अपने उदेश्यों की पूर्ति के सहायता मिल सके।
१०। प्रकृति संरक्षण के लिए समाज में पर्यावरण-प्रेम एवं पारिस्थितिकी के प्रति जागृति पैदा करना।
११। विभिन्न योग पद्धतियों के तहत शारीरिक , मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ के लिए इच्छुक एवं सुपात्र लोगों को शिक्षित करना।
१२। योग्य विद्वानों तथा आचार्यों को सम्मान, पुरुस्कार एवं विद्यार्थियों को छात्रवृतियां प्रदान करना।
१३। होनहार किंतु अभावग्रस्त बच्चों व अनाथों के पुनर्वास के लिए स्वतंत्र रूप से संस्थाएं स्थापित / संचालित करना एवं अन्य संस्थाओं के सहयोग से कार्य करना।
१४। 'वेदांत मण्डलं' के उदेश्यों की पूर्ति के लिए कोई भी उपयुक्त कार्य करना। ऐसे कार्यों के लिए संस्था अपने संसाधनों, निधियों में से व्यय कर सकेगी बशर्ते की 'वेदांत मण्डलं' के सारे लाभ व चल अचल सम्पति का उपयोग इस अभिलेख में उल्लिखित उदेश्यों के लिए ही हो, तथा उसका कोई भी अंश किसी भी व्यक्ति को, संस्था के नए पुराने सदस्यों या उनके प्रतिनिधियों को अन्य उदेश्यों के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जाएगा। संस्था का कोई भी व्यक्ति संस्था की चल अचल सम्पति पर कोई दावा नहीं करेगा, या इसकी सदस्यता के आधार पर किसी प्रकार का लाभ प्राप्त नहीं करका। संस्था के किसी भी लाभ का भुगतान संस्था के वर्तमान अथवा नी वर्तमान सदस्यों को या इन सदस्यों के माध्यम से दावा करने वाले एक या अधिक व्यक्ति को नहीं किया जाएगा.
Friday, January 16, 2009
वेदांत देता है एकात्म का भाव - अनुभव करें आप
- यह समस्त चराचर सृष्टि एक ही तत्त्व से निर्मित है।
- समस्त जड़ चेतन में एक ही तत्त्व क्रियाशील है।
- हम सब इसी एक तत्त्व का अंश हैं। इसी एक तत्त्व का विस्तार हैं।
- जब हम अपने अहम् के कारण इस भाव को अनुभव नहीं कर पाते तभी अपने और पराये के प्रति पूर्वाग्रहों से पीड़ित होते हैं।
- इस एकत्व के भाव के साथ हमें इस संसार में अपनी अपनी भूमिकाओं को निभाने के लिए आगे बढ़ना है।
- आइये, इस भावना के साथ हम मानवता की सेवा के लिए आगे बढें।
- आइये, इसी महान भावना के साथ जीव- जंतुओं, वृक्षों-नदियों और समस्त प्रकृति के संरक्षण के लिए सामने आयें।
- आइये, छोटे-छोटे विषयों को भुला कर हम अपने अहम् को शांत करें।
- अपने अपने स्तर पर हम परस्परता का भाव बढाएँ । आनंद का आदान-प्रदान करें।
- हम सृष्टि के विस्तार का एक कमजोर पक्ष होने से बचें।
- शक्ति सम्पन बनें और शक्ति का सदुपयोग विकास के लिए करें, विनाश के लिए नहीं।
- विकास भौतिक हो, विकास आध्यात्मिक हो। शक्ति ऊर्धव्गामी हो ।
- आइये , इस सनातन सत्य को समझें।
- वेदान्त का महान भारतीय आदर्श शीघ्र ही एक वैश्विक संस्कृति का सूत्रपात करेगा।
- सहयोगी होंगे आप, मध्यम होगा "वेदान्त मंडलम" , साक्षी होगा जहाँ।