आत्मदर्शन
आत्म दर्शन का अर्थ है स्वयं को देखना। स्वयं को हम कहाँ देख सकते हैं? दर्पण में या अपनी कल्पना में । या फिर हम दूसरे की आंखों में स्वयं को देखना चाहते हैं। यह आत्मदर्शन नही है। आत्मदर्शन दूसरे की आंखों में नही, दूसरे में स्वयं को देखना है। और किसी एक व्यक्ति या जाति में नहीं, सभी में स्वयं को देखना। जब दूसरा भी मेरा आत्म बन कर मेरे सामने होगा तब वह हमें उतना ही प्रिय होगा जितने हम स्वयं को। और वास्तव में तब तो कोई दूसरा होगा ही नहीं। और जब एक ही बचा तो फिर बचा कौन? यही परम ज्ञान है, श्रेष्ठ ज्ञान है। मन बुद्धि, विवेक की परम अवस्था। जहाँ ये सब साधन स्वयं उस आत्मतत्व में विलीन हो जाते हैं।