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Tuesday, May 26, 2009

आज का वेदान्त विचार


मानव जीवन की सार्थकता है - सेवा और साधना

मानव जीवन की सार्थकता क्या है? क्या यह जीवन भोग के लिए है, अथवा सेवा और साधना के लिए है। हमें अपने जीवन को लोक कल्याण के कार्यो में लगाते हुए जीवन के सत्य को समझने की कोशिश करनी चाहिए। जीवन हमें मिला किसलिए है? खाने-पीने और इस सारे उपभोग के लिए दिन-रात भाग-दौड़ कर उपक्रम करने के लिए ? नहीं, इतने भर के लिए तो कदापि नहीं। हम ईश्वर की भक्ति करते हैं तो वह भी उपभोग की वस्तुएं मांगने के लिए। क्या ईश्वर की भक्ति मात्र अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए करके हम उस महान ईश्वरीय सत्ता का अपमान नहीं करते हैं, जिसने हमें बिना मांगे अपनी तमाम निधियों से नवाजा है? यह तो सम्भव है कि हमें सत्य का ज्ञान न हो, लेकिन यह सम्भव नहीं कि हम पराये दुःख को भी न भांप सकते हों। ईश्वर ने हमें यह काबलियत दी है। हम दुखी होते हैं तो हमें दूसरे के दुःख का भी पता होता है। लेकिन प्रायः हम उसकी ओर से आँखें मूंदे अनजान बने रहते हैं। हमारे पास यह तर्क भी हो सकता है कि हम आख़िर सबके लिए तो कुछ नहीं कर सकते, अथवा उसके लिए जो कुछ करेगा ईश्वर ही करेगा। हम यह नहीं मान पाते कि हमें ही शायद ईश्वर ने इस बड़े कार्य के लिए चुना हो। क्या हमें ऐसा सौभाग्य पाना चाहते हैं? सेवा और साधना का मार्ग कितने लोग अपनाते हैं। इस महा मार्ग पर चलने का सौभाग्य कितने लोगों को मिल पता है? याद रखें सत्य के मार्ग पर चलने वाला कभी दु:खी नहीं होता। भगवान की उस पर निरंतर कृपा रहती हैं। इसके लिए हमें अपना घर परिवार छोड़ने की भी आवश्यकता नहीं है। सेवा और साधना परिवार में तथा समाज में रहकर ही करनी चाहिए। मानव जीवन सांसारिक उपभोग के साथ सेवा और साधना के लिए भी है। आइये धर्म के इस महामार्ग पर चलते हुए वेदान्तिक क्रांति की इस नई धारा के लिए तैयार हो जायें।